Dark Web, एक ऐसा जाल जिसमें फंसने वाला कभी छूट नहीं पाया है। अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है दिल्ली एनसीआर में 150 स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी मिली थी, जिसकी जाँच काफी मुश्किल हो गयी थी, क्योंकि इस ईमेल के आईपी एड्रेस को जब ट्रेस किया गया तो उसकी लोकेशन मिली रूस की। पुलिस कोई आशंका थी कि ईमेल भेजने वाला विदेश में इस्टैबलिश्ड सर्वर और डार्क वेब का इस्तेमाल कर रहा है। आज हम इस आर्टिकल में डार्क वेब के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी शेयर करना चाहते हैं ताकि लोगों में इसको लेकर जागरूकता फैल सके:
क्या है Dark Web की तिलिस्मी दुनिया
Dark Web की तिलिस्मी दुनिया के बारे में जानने से पहले आप ये जान ले कि डार्क वेब इंटरनेट का एक हिस्सा होता है, बस इसकी पहचान करना थोड़ा मुश्किल होता है। ये इंटरनेट की दुनिया का वो अंधेरे भरा हिस्सा है जहां पर Illigal Activities भी Leagal तरीके से की जा सकती है। ये एक ऐसा वेब है जिसके सर्च इंजन तक आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता। इसके लिए स्पेशल ब्राउज़र का इस्तेमाल किया जाता है।
तीन हिस्सों की इंटरनेट की दुनिया
इंटरनेट की दुनिया को तीन हिस्सों में बांटा गया है। जिस हिस्से का इस्तेमाल आप रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं, उसे सरफेस या सेफ इंटरनेट कहते हैं। जो कि पूरे इंटरनेट की दुनिया में महज 4% होता है, बाकी का 96% हिस्सा डीप वेब या फिर Dark Web होता है।
इंटरनेट एक समुद्र की तरह है, जिसके तीन हिस्से हैं
पहला गूगल और दूसरे सर्च इंजन, जिसपर आपको वो सभी कंटेंट दिखते हैं जो सर्च इंजन के इंडेक्स पर होते हैं और दूसरी सतह है डीप वेब जहां जाकर आप ऐसे कंटेंट को खोज सकते हैं जो वेब ब्राउज़र या सर्च इंजन आईडेंटिफाई नहीं कर पाता। कई बार ऐसा होता है कि हमारे Daily के काम भी डीप वेब का हिस्सा होते हैं।
इंटरनेट की दुनिया का अंडरवर्ल्ड है डार्क वेब
Dark Web को इंटरनेट की दुनिया का अंडरवर्ल्ड समझा जाता है, जहां डाटा की खरीद फरोख्त होती है। लीक हुआ जितना भी डाटा है वो हैकर्स डार्क वेब पर ही खरीदते और बेचते हैं। इसे एक्सेस करने के लिए स्पेशल ब्राउज़र चाहिए होता है, जिसे TOR (द ओनियन रूटर) के जरिए एक्सेस किया जा सकता है।
Dark Web में ज्यादातर वो वेब पेज और कंटेंट पाए जाते हैं, जो नॉर्मल सर्च इंजन इंडेक्स में नहीं होते है। ये दुनिया काफी खतरनाक है, जहां पर जाकर हैकर्स का शिकार भी बना जा सकता है। इतना ही नहीं Dark Web के जरिए जो हैकर्स अपराध करते हैं उन्हें ट्रैक करना भी मुश्किल हो जाता है। इसी वजह से क्रिमिनल इसका इस्तेमाल करते हैं।